| 1. | (तात्त्विक रूप से यह पहलू माध्यमांतर का नहीं रूपान्तर का है ।
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| 2. | यह स्वाभिमान, गर्व, गौरव, या अभिमान आदि पद से तात्त्विक रूप से भिन्न है।
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| 3. | यह स्वाभिमान, गर्व, गौरव, या अभिमान आदि पद से तात्त्विक रूप से भिन्न है।
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| 4. | तात्त्विक रूप से यदि विचार किया जाय तो क्रोध एवं प्रेम, दोनों एक ही ऊर्जा से निकली हुई भावना के दो रूप हैं।
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| 5. | विश्वास अगर पत्थर की मूर्ति में है तो भी कल्याण होगा ही, क्योंकि तात्त्विक रूप से तो पत्थर में भी वह तुम्हारा चैतन्यदेव छुपा है घन सुषुप्ति में।
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